Mac Mohan: तीन शब्द के डायलॉग के लिए 27 बार मुंबई से बेंगलुरु गए थे ‘सांभा’, फिल्म में अपना रोल देख भर आई थीं आंखें

कभी एक फिल्म या एक डायलॉग ही कलाकार को वह पहचान दिला देता है, जिसके लिए वह पूरी जिंदगी मेहनत करता है। कुछ ऐसा ही हुआ था 24 अप्रैल 1938 को कराची में जन्मे मोहन माकीजानी के साथ, जिन्हें दुनिया मैक मोहन के नाम से जानती है। मैक मोहन बॉलीवुड के ऐसे खलनायक थे, जो महज तीन शब्द बोलकर ही हमेशा के अमर हो गए। फिल्म ‘शोले’ में बोला गया उनका तीन शब्द का डायलॉग ‘पूरे पचास हजार’ ने लोगों के दिलों में इस कदर जगह बनाई कि वह उन्हें असली नाम छोड़ सांभा कहकर ही बुलाने लगे। मैक मोहन का 10 मई 2010 को उनका निधन हो गया था और आज उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर हम आपको उनके जीवन से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से बताने जा रहे हैं।
क्रिकेटर बनना चाहते थे मैक: मैक मोहन के पिता भारत में ब्रिटिश आर्मी के कर्नल थे। ऐसे में उनके पिता का कराची से ट्रांसफर लखनऊ हो गया। लखनऊ में ही उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई की। बचपन से क्रिकेटर बनने का शौक रखने वाले मैक मोहन ने उत्तर प्रदेश की क्रिकेट टीम के लिए भी खेला था। उन दिनों मुंबई में क्रिकेट की अच्छी ट्रेनिंग मिलती थी और इसी सिलसिले में वह 1952 में मुंबई आ गए। इसके बाद उन्होंने कई क्रिकेट टूर्नामेंट में भी भाग लिया, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था और उनकी रुचि रंगमंच की दुनिया में होने लगी।
शौकत कैफी ने दिया पहला मौका: मुंबई में उन्होंने कॉलेज के साथ ही थिएटर में भाग लेना शुरू कर दिया। उन दिनों शौकत कैफी (शबाना आजमी की मां) को एक नाटक के लिए दुबले- पतले लड़के की जरूरत थी। उनके दोस्त ने इसकी जानकारी उन्हें दी। मैक मोहन को पैसे की जरूरत थी, तो उन्होंने शौकत कैफी से काम मांगने के लिए मुलाकात की और ऐसे उनका एक्टिंग करियर शुरू हुआ। शौकत कैफी ने उन्हें कहा था कि तुम बहुत अच्छे अभिनेता हो। थिएटर में मन लगाकर काम करो। यहीं से तुम्हें फिल्मों में भी काम मिल जाएगा।
तीन शब्द के लिए लगाए कई चक्कर: मैक मोहन ने 1964 में फिल्म ‘हकीकत’ से बॉलीवुड में डेब्यू किया था। इसके बाद वह कई बेहतरीन फिल्मों में नजर आए जैसे ‘जंजीर’, ‘सलाखें’, ‘शागिर्द’, ‘सत्ते पे सत्ता’, ‘डॉन’, ‘दोस्ताना’, ‘काला पत्थर’ लेकिन जो पहचान उन्हें ‘शोले’ में एक तीन शब्द के डायलॉग से मिली, वो सबसे परे थी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस तीन शब्द के डायलॉग के लिए उन्हें 27 बार मुंबई से बेंगलुरु जाना पड़ा था। दरअसल, फिल्म की शुरुआत में उनका रोल बड़ा था, लेकिन एडिटिंग के बाद बस उनके तीन शब्द ही फिल्म में बचे। जब फिल्म रिलीज हुई तो मैक अपने रोल को देखकर रोने लगे थे। यहीं नहीं उन्होंने निर्देशक रमेश सिप्पी से कहा था मेरा इतना सा रोल भी क्यों रखा? इस पर रमेश सिप्पी ने कहा था कि अगर ये फिल्म हिट हुई तो लोग उन्हें सांभा के नाम से जानेंगे और ऐसा ही हुआ।
फेफड़ों में हो गया था ट्यूमर: अपने फिल्मी करियर में 200 फिल्मों में काम करने वाले मैक मोहन जब अजय देवगन, परेश रावल, कोंकणा सेन शर्मा, सतीश कौशिक, संजय मिश्रा के साथ ‘अतिथि तुम कब जाओगे’ में काम कर रहे थे तो वह बीमार पड़ गए। उन्हें मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती चली गई। उनके फेफड़ों में ट्यूमर हो गया था और 10 मई 2010 को उनका निधन हो गया।