Mulayam Singh Yadav : चुनौतियों से भिड़ने और पार पाने की कला के महारथी थे मुलायम, जलाकर रखी समाजवाद की मशाल

अपनी भाषा, अपने वेश, अपने विषय, अपने समाज और अपने गांव को सत्ता की कालीन पर बिछा देने की ताकत मुलायम सिंह जैसे नेता ही रखते हैं। मेरा मुलायम सिंह से तो कोई बहुत निकट का संबंध नहीं रहा, लेकिन जब भी उनसे संपर्क व संवाद हुआ, बेहद सहजता से हुआ।
मुलायम सिंह यादव के निधन से राजनीति के एक युग का अवसान हो गया। समतावादी राजनीति के विचार को बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर और राम मनोहर लोहिया ने आगे बढ़ाया। मुलायम सिंह यादव उन विचारों से निकले जननेता थे। साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से निकले व्यक्ति, जिसकी जड़ें पहलवानी में थीं, ने राजनीति के अखाड़े में खूब दांव-पेच आजमाए।
यह अलग बात है कि राजनीतिक विचारों के लिहाज से वे भाजपा के धुर-विरोधी थे, पर उनका वैचारिक विरोध उनके व्यक्तिगत संबंधों में नहीं दिखाई देता था। अपने धुर-विरोधी विचारधारा के व्यक्ति से भी उनके निजी संबंध मधुर थे। गांव, गंवईपन, खेती-किसानी, भारतीय भाषा के सरोकार कहीं न कहीं उनके जेहन में बसे हुए थे। बताता चलूं कि मुलायम सिंह यादव के व्यक्तित्व पर लिखने के पीछे मेरे मन में कोई स्वजातीय बोध नहीं है।
कालक्रम में मुलायम सिंह की छवि स्वजातीय नेता के रूप में भले बन गई थी, लेकिन उन्होंने कभी अपने आप को ऐसा बनाने की कोशिश नहीं की। जनेश्वर मिश्र जैसे धुरंधर लोगों के साथ उन्होंने राजनीति में समाजवाद की मशाल को जलाकर रखा। मुलायम सिंह, लोहिया के सिपाही थे। लोहिया की समाजवादी राजनीति का मूल कांग्रेस का विरोध था।
लोहिया भी कांग्रेस से ही निकले थे, लेकिन उन्हें लगता था कि कांग्रेस देश को सही दिशा नहीं दे पा रही। आगे चलकर मुलायम भी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के तिलिस्म को तोड़ने वाले नेता साबित हुए। कांग्रेस के थोपे आपातकाल के दौरान लोकतंत्र को बचाने के संघर्ष में भी मुलायम सिंह लोकतंत्र के प्रहरी की भूमिका में सक्रिय रहे।
कांग्रेस की राजनीति में संकीर्णता थी। इस कारण से किसी सामान्य व्यक्ति के लिए राजनीति में जगह बना पाना आसान नहीं था। ऐसे में जब प्रदेश के किसी सामान्य परिवार का व्यक्ति राजनीति में भाग लेता था, तो उसे डकैत बताकर जान से मारने की धमकी देकर उसे दबा दिया जाता था।
ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में, स्वयं के जीवन की परवाह किए बिना, आम लोगों के बीच अपने राजनीतिक संघर्ष की यात्रा को मुलायम सिंह ने आगे बढ़ाया। उत्तर प्रदेश की राजनीति में आज सामाजिक रूप से हाशिये के लोगों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व उभरकर आया है, तो उसके पीछे मुलायम सिंह जैसे नेताओं की एक फेहरिस्त है, जिन्होंने जमीनी तौर पर राजनीति की इस कठिन लड़ाई को लड़ा है।
राजपथ पर गांव-गिरांव की मिट्टी को दी मजबूती
अपनी भाषा, अपने वेश, अपने विषय, अपने समाज और अपने गांव को सत्ता की कालीन पर बिछा देने की ताकत मुलायम सिंह जैसे नेता ही रखते हैं। मेरा मुलायम सिंह से तो कोई बहुत निकट का संबंध नहीं रहा, लेकिन जब भी उनसे संपर्क व संवाद हुआ, बेहद सहजता से हुआ। ये सहजता सब जगह उनमें रहती थी। वे सरल भी थे, सहज भी। यूपी में भी तमाम लोग बताते हैं कि नेताजी कभी भी फोन कर हालचाल ले लेते हैं।
सुबह की पहली रोशनी के साथ ही लोगों से मिलना शुरू कर देने वाले नेताजी शाम होने तक उनके बीच ही समय गुजारते थे। लोगों के विषयों को सुनना, उनकी रुचि में था। उनकी राजनीति में दंभ व अहंकार के लिए कोई जगह नहीं थी, लेकिन एक पहलवान की तरह चुनौतियों से भिड़ने और पार पाने की कला उनके भीतर जरूर थी।
भांति-भांति की राजनीति करते हुए लोग कई बार राजनीति को केवल कॅरिअर मान लेते हैं, लेकिन मुलायम सिंह असली पहलवान थे। उन्हें तो जीत हो या हार, हर हाल में अखाड़े में डटे रहना ही पसंद था। इस अखाड़े के पहलवान ने भारत की राजनीति के राजपथ पर गांव-गिरांव की मिट्टी को मजबूत करने का काम किया है। श्रद्धांजलि। (-लेखक केंद्रीय वन-पर्यावरण मंत्री हैं।)